देश में एससी-एसटी एक्ट को लेकर अक्सर विवाद चलता रहा है. इसी बीच कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट यानि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत तभी कार्रवाई हो सकती है जब जाति को लेकर बदसलूकी किसी सार्वजनिक स्थान पर की गयी हो।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज किये गये एक मामले में सुनवाई के दौरान ये फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया. इस मामले में एक व्यक्ति ने ये शिकायत की थी कि एक इमारत की बेसमेंट में उसे जातिसूचक शब्द कहे गये थे और जाति को लेकर दुर्व्यवहार किया गया था. हाईकोर्ट ने कहा कि किसी इमारत का बेसमेंट सार्वजनिक स्थान नहीं हो सकता।
इस मामले में अभियुक्त बनाये गये व्यक्ति ने कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. हाईकोर्ट के जज एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा कि पूरे मामले को देखने के बाद दो बिंदु सामने आये. पहला ये कि इमारत का ताहखाना सार्वजनिक स्थान नहीं माना जा सकता. दूसरा ये कि शिकायत करने वाले और उसके गवाह सहकर्मी हैं और उन सबका अभियुक्त से पहले से ही विवाद चल रहा था. बता दें कि मोहन नाम के व्यक्ति ने एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया था।
दरअसल ये मामला दो साल पहले दर्ज कराया गया था. 2020 में मोहन नाम के व्यक्ति ने केस दर्ज कराया कि बिल्डर रितेश पियास ने बिल्डिंग के ताहखाने में उसके लिए जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया था. इस मामले में बिल्डिंग के मालिक जयकुमार नायर के साथ साथ उन मजदूरों को गवाह बनाया गया था जो मोहन के साथ काम कर रहे थे. मोहन और दूसरे मजदूरों को जयकुमार नायर ने काम पर रखा था. जिस रितेश पियासी को अभियुक्त बनाया गया था उसका पहले से ही नायर से विवाद चल रहा था और मामला कोर्ट में था।