बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में नाबालिग रेप पीड़िता के 16 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति दी है। इस दौरान कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘हम रेप पीड़िता को मां बनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते’
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच के जज ए. एस. चंदुरकर और उर्मिला जोशी फोल्के ने ये फैसला सुनाया।
मां बनने या न बनने का फैसला महिला के पर्सनल लिबर्टी का हिस्सा
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी महिला का मां बनने या न बनने का फैसला उसके पर्सनल लिबर्टी से जुड़ा है। पर्सनल लिबर्टी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षित है। ऐसे में किसी को भी मां बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। खास तौर से तब जब कोई रेप पीड़िता नाबालिग प्रेग्नेंट हो।
हत्या की आरोपी नाबालिग ने कोर्ट से मांगी थी अबॉर्शन की अनुमति
बॉम्बे हाईकोर्ट से एक नाबालिग रेप पीड़िता ने अपने 16 सप्ताह के गर्भ के गिराने की अनुमति मांगी थी। याचिका में उसने बताया था कि उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और एक हत्या के मामले में वह फिलहाल जेल मे बंद है। ऐसे में उसके और उसके परिवार के लिए बच्चे की परवरिश कर पाना संभव नहीं है। कोर्ट ने नाबालिग लड़की की दलील को सही पाते हुए उसे अबॉर्शन कराने की इजाजत दे दी है।
हत्या के आरोप में जेल में बंद है नाबालिग रेप पीड़िता
बॉम्बे हाई कोर्ट मे याचिका देने वाली नाबालिग रेप पीड़िता खुद भी हत्या के एक मामले में जेल में बंद है। उसने वकीलों के माध्यम से जेल से दी याचिका दायर की थी। दूसरी ओर उसका दोषी रेपिस्ट भी पॉक्सो एक्ट मे जेल की सजा काट रहा है।