Rakul Preet Singh Movie
रकुल प्रीत सिंह की फिल्म छतरीवाली सबसे अंत में जो बात करती है, उसे सबसे पहले जान लेना बेहतर है. फिल्म खत्म होते ही स्क्रीन पर चमकता हैः गर्भनिरोध के लिए भारत में जहां 10 में से मात्र एक पुरुष कंडोम का इस्तेमाल करता है, वहीं 10 में से चार महिलाएं नसबंदी कराती हैं. मतलब यह कि गर्भनिरोध के दस में औसतन पांच प्रयास ही होते हैं.
जनसंख्या नियंत्रण की बहस अपनी जगह है परंतु नतीजा सामने है कि 2023 में भारत अधिकृत रूप से दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. ऐसे में अगर गर्भनिरोधकों को लेकर फैली भ्रांतियों तथा नई पीढ़ी को यौन शिक्षित करने का प्रयास न किया जाए तो अगले दशकों में स्थिति का विस्फोटक होना तय है. छतरावाली इन्हीं दोनों मुद्दों को मिलाकर चलती है.
कंडोम कब से
यूं तो कंडोम भारतीय बाजार में 1940 के दशक से है, परंतु स्वतंत्र भारत में सरकार ने तेजी से बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए 1963 में मुफ्त कंडोम बांटने का फैसला किया था. 1968 में विदेश से मंगाए कंडोम निरोध ब्रांड के तहत बेचे जाने लगे थे. तब से बहुतों के लिए कंडोम का मतलब आज भी निरोध है. कई लोग कंडोम के लिए छतरी शब्द प्रतीकात्मक रूप में इस्तेमाल करते हैं. कुछ हेलमेट भी कहते हैं. निर्देशक तेजस प्रभा विजय देओस्कर इसे छतरी कहते हुए चलते हैं.
कहानी हरियाणा के करनाल शहर की है. साइंस पढ़ी सान्या ढींगरा (रकुल प्रीत सिंह) को नौकरी की तलाश है. वह ट्यूशन पढ़ा कर घर चला रही है. मां मोहल्ले के लड़कों के साथ जुआ-सट्टा लगा कर पैसा बनाने के चक्कर में रहती है. सान्या को कंडोम बनाने वाली कंपनी में कंडोम टेस्टर की नौकर मिल जाती है. इसी बीच उसे शहर में पूजा-पाठ के सामान की दुकान चलाने वाले ऋषि (सुमित व्यास) से प्यार होता है. शादी होती है. अब कहानी इस घर में शिफ्ट हो जाती है.
जहां ऋषि के बड़े भाई, भाई जी (राजेश तैलंग) बायलॉजी टीजर हैं, मगर सोच में दकियानूसी. भाई की पत्नी चार बार गर्भपात करा चुकी है. हमेशा बीमार रहती है. यहीं से सान्या और भाई जी आमने-सामने आ जाते हैं. बड़ों को लिए कंडोम और बच्चों के लिए यौन शिक्षा जरूरी है.